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Kanha Ko Bebas Bna Gyi Wo | Poem By Kanha Kamboj | Trd Poetry

Kanha Ko Bebas Bna Gyi Wo | Poem By Kanha Kamboj | Trd PoetryKanha Ko Bebas Bna Gyi Wo | Poem By Kanha Kamboj | Trd Poetry
Kanha Ko Bebas Bna Gyi Wo | Poem By Kanha Kamboj | Trd Poetry

इस कविता के बारे में :

द रियलिस्टिक डाइस के लिए यह खूबसूरत कविता ‘कान्हा को बेबस बना गयी वो‘कान्हा कंबोज द्वारा प्रस्तुत की गई है और यह भी उनके द्वारा लिखी गई है जो बहुत सुंदर है।

*****

अपनी हकीकत में ये एक कहानी 

करनी पड़ी

उसके जैसी मुझे अपनी जुबानी 

करनी पड़ी

कर तो सकता था बातें इधर 

उधर की बहुत

मगर कुछ लोगों में बातें मुझे खानदानी 

करनी पड़ी

***

अपनी आँखों से देखा था मंजर 

बेवफाई का

गैर से सुना तो फिजूल हैरानी 

करनी पड़ी

मेरे ज़हन से निकला ही नहीं 

वो शख्स 

नये महबूब से भी बातें पुरानी 

करनी पड़ी

***

उससे पहले मोहब्बत रूह 

तलक की मैंने

फिर हरकतें मुझे अपनी जिस्मानी 

करनी पड़ी

ताश की गड्डी हाथ में ले कान्हा को 

जोकर समझती रही

फिर पत्ते बदल मुझे बेईमानी 

करनी पड़ी

***

जैसे चलाता हूं वैसे नहीं चलता

कैसे बताऊं यार ऐसे नहीं चलता

खुदको मेरा साया बताता है 

फिर क्यूं तू मेरे जैसे नहीं चलता

तेरे इश्क में हूं बेबस इतना मैं 

जवान बेटे पर बाप का हाथ 

जैसे नहीं चलता 

***

दर्द, दिमाग, वार, ये शायद जंग है 

मेरी जां मोहब्बत में तो ऐसे 

नहीं चलता

बस यही बातें हैं इस पूरी 

गजल में कान्हा 

कभी ऐसे नहीं चलता कभी वैसे 

नहीं चलता।

***

Tera Dimag Kharab Hai Kya? 

( तेरा दिमाग खराब है क्या? )

कहती है तुमसे ज्यादा प्यार करता है 

उसकी इतनी औकात है क्या?

रकीब का सहारा लेकर कान्हा को बुला दूंगी 

तेरा दिमाग खराब है क्या?

*****

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