Dr. Rahat Indori - Bikhar Bikhar Si Gayi Hai Kitaab Saanson Ki
राहत इंदौरी के बारे में :-
राहत कुरैशी, जिसे बाद में राहत इंदौरी के नाम से जाना जाता है, का जन्म 1 जनवरी 1950 को इंदौर में रफतुल्लाह कुरैशी, कपड़ा मिल मजदूर और उनकी पत्नी मकबूल उन निसा बेगम के यहाँ हुआ था। वह उनका चौथा बच्चा था।
उन्होंने अपनी स्कूली शिक्षा नूतन स्कूल इंदौर से की जहाँ से उन्होंने अपनी हायर सेकंडरी पूरी की। उन्होंने 1973 में इस्लामिया करीमिया कॉलेज, इंदौर से स्नातक की पढ़ाई पूरी की और 1975 में बरकतउल्ला विश्वविद्यालय भोपाल (मध्य प्रदेश) से उर्दू साहित्य में एमए पास किया। रहत को पीएच.डी. उर्दू साहित्य में उर्दू मुख्य मुशायरा शीर्षक से 1985 में मध्य प्रदेश के भोज विश्वविद्यालय से। 11 अगस्त 2020 को कार्डियक अरेस्ट से मध्य प्रदेश के इंदौर के अरबिंदो अस्पताल में उनकी मृत्यु हो गई। उनकी मृत्यु से ठीक एक रात पहले कोरोनो वायरस के संक्रमण के लिए उनका परीक्षण सकारात्मक था
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Ye sard raatein bhi bankar
abhi dhuaan ud jaayein
Wo ek lihaaf main odhun to
sardiyaan ud jaayein
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Bahot guroor hai dariya
ko apne hone par
Jo meri pyaas se uljhe to
dhajjiyaan ud jaayein
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Hawaayein baaz kahaan aati
hain sharaarat se
Saron pe haath na rakhein
to pagdiyaan ud jaayein
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Bikhar bikhar si gayi hai
kitaab saanson ki
Ye kaagzaat khuda jaane kab
kahaan ud jaayein
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ये सर्द रातें भी बनकर अभी धुंआ उड़ जाएँ
वो एक लिहाफ मैं ओढूँ तो सर्दियां उड़ जाएँ
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बहोत गुरूर है दरिया को अपने होने पर
जो मेरी प्यास से उलझे तो धज्जियां उड़ जाएँ
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हवाएं बाज़ कहाँ आती हैं शरारत से
सरों पे हाथ न रखें तो पगड़ियां उड़ जाएँ
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बिखर बिखर सी गयी है किताब साँसों की
ये कागज़ात खुदा जाने कब कहाँ उड़ जाएँ
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... Thank You ...
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