Galti Ki Tujhe Sir Par Bithake | Poem By Kanha Kamboj | The Realistic Dice
इस कविता के बारे में :
द रियलिस्टिक डाइस के लिए यह खूबसूरत कविता 'गलती की तुझे सर पर बिठाके 'कान्हा कंबोज द्वारा प्रस्तुत की गई है और यह भी उनके द्वारा लिखी गई है जो बहुत सुंदर है।
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बात मुझे मत बता क्या बात रही है
रह साथ उसके, साथ जिसके रात रही है
ज़रा भी ना हिचकिचायी होते हुए बेआबरू,
बता तेरे जिस्म से और कितनों
की मुलाकात रही है
***
वस्ल की रात बस एक किस्सा
बनकर रह गई
मेरे हाथ में तेरी यादों की
हवालात रही है
वक्त के चलते हो जाएगा सब ठीक
अंत भला क्या होगा बुरी जिसकी
इतनी शुरूवात रही है
***
बदन के निशान बताए गए जख्म पुराने
मोहतरमा कमजोर कहां मेरी
इतनी याददाश्त रही है
गैर के साथ भीगती रही रात भर
बड़ी बेबस वो बरसात रही है
कुछ अश्क बाकी रह गया तेरा मुझमें
वरना कब किसी की इतनी
कही बर्दाश्त रही है
***
गलती मेरी ये रही तुझे सर पर बैठा लिया
वरना कदमों लायक भी कहां
तेरी औकात रही है
तेरे इश्क में कर लिया खुद
को बदनाम इतना
जरा पूछ दुनिया से कैसी कान्हा
की हैयात रही है
***
सुना है तेरी चाहत में मर गए लोग
यानी बहुत कुछ बड़ा कर गए लोग
सोचा कि देखे तुझे और देख के सोचा ये
तुझे सोचते हुए क्या क्या कर गए लोग
तेरी सोहबत में आने के बाद सुना है
नहीं दोबारा मुड़कर फिर घर गए लोग
तुझसे मोहब्बत में कुछ भी नहीं हासिल।
***
तेरे लिए हद से गुजर गए लोग
तुम छोड़ दो उस अप्सरा की बातें कान्हा
अप्सरा नहीं होती कहकर गये लोग
मेरे लहजे से दब गयी वो बात
तेरे हक में कही थी मैंने जो बात
तेरी एक नहीं से खामोश हो गया मैं
कहने को तो थी मुझ पर सौ बात
***
तू सोच, के बस तुझसे कही है
मैंने किसी से नहीं कही जो बात
तू किसी से कर मुझे ऐतराज नहीं
ताल्लुक अगर मुझसे रखती हो वो बात।
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सुनिए इस कविता का ऑडियो वर्शन
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