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Yaar Usne Mujhe Bahut Rulaya | Poem By Kanha Kamboj | The Realistic Dice |
इस कविता के बारे में :
इस काव्य 'यार उसने मुझे बहुत रुलाया' को The Realistic Dice के लेबल के तहत कान्हा कम्बोज ने लिखा और प्रस्तुत किया है।
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तू जरूरी है हर जरूरत को आजमाने
के बाद
तू चलाना मर्जी अपनी मेरे मर जाने
के बाद
है सितम ये भी कि हम उसे चाहते हैं
वो भी इतना सितम ढाने के बाद
***
हो इजाजत तो तुझे छूकर देखूं
सुना है मरते नहीं तुझे हाथ लगाने
के बाद
वो रास्ते में मिली तो मुस्कुरा
दिया देखकर
बहुत रोया मगर घर जाने के बाद
है तौहीन मेरी जो तुम कर रही हो
आवाज उठाई नहीं जाती सर
झुकाने के बाद
***
कितनी पागल है मुझे मेरे नाम से
पुकार लिया
मुझे पहचानने से मुकर जाने के बाद
मुझसे मिलने आओगी ये वादा करो
मुलाकात रकीब से हो जाने के बाद
वैसे हो बड़े बदतमीज तुम कान्हा
किसी ने कहा अपनी हद से गुजर
जाने के बाद
***
तेरी हर हकीकत से रूबरू हो
गया हूं मैं
ये पर्दा किस बात का कर रही हैं
एक मैं हूं आंखों से आंसू नहीं
रुक रहे
एक तू है कि हंस के बात कर रही है
लहजे में मुआफ़ी, आँखों में शर्म
तक नहीं
ये एक्टिंग का कोर्स तू लाजवाब
कर रही है
***
सारी रात उसे छूने से डरता रहा
मैं बेबस, बेचैन बस करवटें
बदलता रहा
हाथ तो मेरा ही था उसके हाथ में
बस बात ये है कि जिक्र किसी
और करता रहा
***
गिरा ले मुझे अपनी नजरों से
कितना ही
झुकने पर तो मजबूर मैं तुझे भी
कर दूंगा
एक बार बदनाम करके तो देख मुझे
महफ़िल में
कसम से शहर में मशहूर मैं तुझे
भी कर दूंगा
***
कहती है तुमसे ज्यादा प्यार करता है
उसकी इतनी औकात है क्या?
रकीब का सहारा लेकर कान्हा
को बुला दूंगी
तेरा दिमाग खराब है क्या?
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