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Izhaar Vs Inkaar | Aarav Singh Negi / Goonj Chand | Poetry
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Izhaar Vs Inkaar | Aarav Singh Negi / Goonj Chand | Poetry |
इस कविता के बारे में :
इस काव्य 'इज़हार Vs इंकार' को G Talks के लेबल के तहत 'गूँज चाँद और आरव सिंह नेगी' ने लिखा और प्रस्तुत किया है।
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आरव:
आज मौसम है कुछ बहका सा
आसमान में वो कला सा बदल छाया है
अभी अभी अपनी कश्ती में छेद देखा है
मैंने लगता है तेरे इश्क़
में डूबने का वक़्त आया है
***
गूँज:
अपनी प्यारी प्यारी बातो में
तू मुझे मत फसा
तुझ जैसे आशिक़ो को मैंने पहले
भी आज़माया है
और डूबने से पहले तो सब करते है
डूबने की बाते
पर वक़्त आने पर सबने पहले
खुद को ही बचाया है
***
आरव:
तेरी बातो से लगता है
दिल जाली है तू
पर ये भी समझ ले की ये
सनम नहीं हरजाई है
अरे ज़रा अख़बार उठा नज़रे
दौड़ा हम वो आशिक़
है जिसकी खबरे हर जगह छाई है
***
गूँज:
हर किसी पे मर मिटने वाले
आशिक़ नहीं होते
तुझ जैसे लड़के प्यार के क़ाबिल
नहीं होते
और सच्ची मोहब्बत तो अक्सर अधूरी
रह जाती है जनाब
सच्ची मोहब्बत के किस्से अखबारों
में नहीं होते
***
आरव:
अरे कहा रहती हो तुम किसने
तुम्हारे मोहल्ले में ये अफ़वाए उड़ाई है
हम तो वो सच्चे आशिक़ है
जिनकी वफाओ के चर्चो ने न जाने
कितनी महफ़िल सजाई है
और एक दिन मौका देंगे तुम्हे
भी खुद को आज़माने का
थोड़ा सांस तो लेलो कहे इतनी
भगदड़ मचाई है
***
गूँज:
पांच-छे गर्लफ्रेंड तो तेरी
पहले ही थी
सुना है आज कल दोस्तों
की भी पटाई है
और मेरे पीछे अपना टाइम
यु वेस्ट ना कर
कियुँकि तुझ जैसे छत्तीसों ने मेरे
पीछे लइने लगाई है
और तुम्हारी जानकारी के लिए
बता दू तुम्हारे मोहल्ले
में ही रहती हु में तुम्हारी बहन ने
ही मुझे तुम्हारी करतुते बताई है
***
आरव:
घर का भेदी लंका ढाये
***
गूँज:
तुझ जैसे से राम बचाये
***
आरव:
अरे मान जा इतने भाव कियूं खाये
***
गूँज:
तुझपे मुझको कुछ ना भये
***
आरव:
लगता है करना पड़ेगा इसको बाई बाई
***
गूँज:
लौट के बुध्धु घर को आये
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सुनिए इस कविता का ऑडियो वर्शन
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... Thank You ...
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