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Talaash | Bas Tumhi Ko Dhoondta Hoon | Jai Ojha

Talaash | Bas Tumhi Ko Dhoondta Hoon | Jai OjhaTalaash | Bas Tumhi Ko Dhoondta Hoon | Jai Ojha
Talaash | Bas Tumhi Ko Dhoondta Hoon | Jai Ojha

इस कविता के बारे में :

एक जाने-माने युवा कवि जय ओझा एक और सुंदर कविता लेकर आए हैं, जिसका शीर्षक उनके द्वारा लिखित और प्रदर्शन किया गया है। इस कविता में, जय ओझा ने एक ऐसे व्यक्ति की पूरी यात्रा के तरीके और भावनाओं का वर्णन किया है जो अपने प्रिय की खोज करता है।

*****

सब कुछ मिला तेरे जाने के बाद

पर खलती रही जो दिल में कहीं

बस उस एक कमी को ढूंढता हूं

खुद को भूल कर मैं खुद ही को ढूंढता हूं

मौत के कगार पर जिंदगी को ढूंढता हूं

मैं जानता हूं जा चुकी तुम

आज भी हर शहर में बस तुम ही को ढूंढता हूं

आज भी हर शहर में बस तुम ही को ढूंढता हूं

***

यूँ रास्ते में नज़्में ग़ज़ले कविताएँ बहुत मिली है 

मुझे पर मैं भी कमाल हूँ कि बस उस अधूरी 

शायरी को ढूँढ़ता हूँ मैं जानता हूं जा चुकी तुम

आज भी हर शहर में बस तुम ही को ढूंढता हूं

आज भी हर शहर में बस तुम ही को ढूंढता हूं

***

अपने भीतर दिल में कहीं एक बवाल 

लिए मैं चल रहा हूं।

आखिर क्या वजह रही तेरे जाने की 

ये अजीब सवाल लिए मैं चल रहा हूं

हां ब्लॉक हूं मैं तेरी जिंदगी में हर जगह से

पर यकीन मान की हर शब में बस उस एक

आईडी को ढूंढता हूं

मैं जानता हूं जा चुकी तुम

आज भी हर शहर में बस तुम ही को ढूंढता हूं

आज भी हर शहर में बस तुम ही को ढूंढता हूं

***

चल रहा हूं बस तलाश में नहीं जानता 

कहां हो तुम कुर्बान थी जो मुझ पर कभी

अब क्या किसी गैर पर फना हो तुम

वो आंसू भी अब सुख गए जो बहे थे 

तेरे हिज्र में पर ना जाने क्यों मैं अपने 

गाल पर उस नमी को ढूंढता हूं

मैं जानता हूं जा चुकी तुम

आज भी हर शहर में बस तुम ही को ढूंढता हूं

आज भी हर शहर में बस तुम ही को ढूंढता हूं

***

तलाश है मुझे तेरी मगर खुद को ही मैं 

पा रहा हूं तेरी गली को छोड़ कर उसकी गली 

में जा रहा हूं फकत जिंदा रहूं इतना मुझे 

अब काफी नहीं बस इसीलिए मैं इस दिल 

में छुपी उस जिंदादिली को ढूंढता हूं

मैं जानता हूं जा चुकी तुम

आज भी हर शहर में बस तुम ही को ढूंढता हूं

आज भी हर शहर में बस तुम ही को ढूंढता हूं

***

राही हूं, मैं रास्ता हूं, मंजिल भी शायद 

मैं ही हूं दरिया हूं मैं बहता हुआ, साहिल भी शायद 

मैं ही हूं जमाने का प्यार खोखला है 

सच कहूं बस इसीलिए मैं आंखों में किसी 

शख्स के इश्क सूफी ढूंढता हूं

मैं जानता हूं जा चुकी तुम

आज भी हर शहर में बस तुम ही को ढूंढता हूं

आज भी हर शहर में बस तुम ही को ढूंढता हूं

***

यूँ रास्ते में नज़्में ग़ज़ले कविताएँ बहुत मिली है मुझे

पर मैं भी कमाल हूँ कि बस उस अधूरी 

शायरी को ढूँढ़ता हूँ मैं जानता हूं जा चुकी तुम

आज भी हर शहर में बस तुम ही को ढूंढता हूं

आज भी हर शहर में बस तुम ही को ढूंढता हूं

***

दश्त में कहीं ढूंढ रहा है हिरण अपनी कस्तूरी को

कितना मुश्किल है तय करना खुद से खुद की दूरी को

*****

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