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"Main" Sushant Singh Rajput | Amritesh Jha | Poetry |
इस कविता के बारे में :
इस काव्य 'में सुशांत सिंह राजपूत' को G Talks के लेबल के तहत अमृतेश झा ने लिखा और प्रस्तुत किया है।
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में सुशांत,
सुशांत सिंह राजपूत
मेरे मरने पे तुम्हे तकलीफ हो रही है
मेरे जीने से तुम्हे ख़ुशी थी क्या
तुम में से हर कोई मेरा कातिल है
तुम्हारे हिसाब से ये खुद खुशी थी क्या
***
मेरे बारे में आज इतना लिख रहे हो
कभी इन खामोश आँखों को पढ़ने
की कोशिश की थी क्या
आज मेरे जाने से आंसू बहा रहे हो
कभी दो पल मेरे साथ रहने
की कोशिश की थी
***
क्या जब मुझे तुम्हारी जरुरत थी
तो तुम में से कोई नहीं था
मेरी तरह तुम्हारी भी कोई बेबसी थी क्या
तुम में से हर कोई मेरा कातिल है
तुम्हारे हिसाब से ये खुद खुशी थी क्या
***
देखो मेरा दर्द जानना है
तो उन दीवारों से पूछो
जिनसे लिपट कर में खुद
को हर रोज़ कोस्टा था
मेरे जाने की वजह पूछनी है
तो उन तारो से पूछो
जिन्हे छुप छुप कर हर रोज़ देखता था
***
तुम तो बस कहने भर को मेरे साथ थे
बाकि बाते तो में इन्ही दीवारों से करता था
ख्वाइशें पूरी तो मेरी एक भी नहीं हुई
मगर ख्वाइशें में हज़ारो की करता था
***
तुम चाहते तो आवाज़ दे सकते थे
मेरी तरह तुम्हारे होठो पर
भी ख़ामोशी थी क्या
तुम में से हर कोई मेरा कातिल है
तुम्हारे हिसाब से ये खुद खुशी थी क्या
***
जब जीते जी साथ नहीं थे
तो मेरे मरने पर
तुम सबका मेरा हमदर्द बनना
भी ज़रूरी नहीं था
कियुँकि जब मुझे ज़रुरत थी तो
मेरे साथ तुम में से कोई नहीं था
***
मेरा मुस्कुराता हुआ चेहरा तो
तुम्हे दिख जाता था
मगर इसके पीछे छुपा दर्द तुम में
से किसी को दिखा ही नहीं
वो दीवारे तो पढ़ नहीं पति न
शायद इसलिए आखरी खत भी
***
मैंने लिखा ही नहीं
आज मारा हु कल भूल जाओगे ये
मतलब का प्यार तुम सब रहने दो
जीते जी न सही काम से काम
मरने के बाद तो मुझे जीने दो
तुम मेरा दर्द समझते भी तो कैसे
कभी तुम्हारे दिल में दर्द
चेहरे पे हसी थी क्या
तुम में से हर कोई मेरा कातिल है
तुम्हारे हिसाब से ये खुद खुशी थी क्या
***
दिखता तो नहीं था मगर हा
एक दर्द मुझमे भी शामिल था
हर किरदार निभाया मैंने ज़िन्दगी में
मगर ये ज़िन्दगी का किरदार
थोड़ा मुश्किल था
में ज़िन्दगी से तो नहीं कुछ
लोगो से हार गया
अब में अकेला तो उनसब से
लड़ नहीं सकता था
***
मेरी ख्वाईशो की लिस्ट
थोड़ी सी लम्बी थी
में युही बेवजह तो मर नहीं सकता था
कुछ बाते संभल कर राखी थी
जो मुझे ज़माने से चीख
चीख कर कहना था
छोटे शहर से ज़रूर था
***
मगर मुझे तुम सबके दिल में रहना था
चलो जीते जी न सही देखना ये है
मरने के बाद किसके दिल में आता हु
आज माँ की बोहोत याद आरही है
चलो आज थोड़ा आ से मिलकर आता हु
कहने को कुछ लोग मेरे साथ तो थे
मगर उनमे कोई बात मेरी माँ जैसी थी क्या
तुम में से हर कोई मेरा कातिल है
तुम्हारे हिसाब से ये खुद खुशी थी क्या
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... Thank You ...
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