Maa Tujhe Salaam | Monika Singh | Poetry | G Talks
इस कविता के बारे में :
इस काव्य 'माँ तुझे सलाम' को G Talks के लेबल के तहत मोनिका सिंह ने लिखा और प्रस्तुत किया है।
शायरी...
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नौ महीने तूने अपने अंदर पाला है मुझे माँ यह तो दुनिया कहती हैं सच तो यह है माँ की तू मुझे आज भी अपने भीतर पालती है हो कोई भी इम्तेहान जिंदगी का मेरी मेरी चिंता में तू आज भी इन रातों को जागती है
थक के बैठ जाऊँ कभी इस दुनिया की बातों से देकर हौसला तू मुझे मेरी हिम्मत बांधती है हो नहीं सकता तुझ जैसा इस दुनिया में कोई और जो मेरी हर गलती भुला मेरी लिए सलामती की दुआ मांगती है
पोएट्री...
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माँ तुम अक्सर कहती थी ना कि जब
माँ बनोगी तब पता चलेगा तुम्हे
तुम्हारे अच्छे के लिए तुम्हें डांटने वाला
जब इस दुनिया में माँ बाप के सिवा और
कोई नहीं मिलेगा माँ, मैं उसे हर रोज
जीती वो जब तुम तब कहती थी
***
पर मै अब भी न समझ पाती
के आखिर इतना बोझ तुम अकेले
कैसे सहती थी इतने बड़े से घर में भी
तुमने कभी नहीं माँगा अपने लिए कोई
स्पेस न त्यौहार पर नयी सारी न ही बदलते
फैशन के नाम पर कभी कोई नया ड्रेस
सबकी सुनती थी तुम पर खुद हमेशा
ख़ामोश ही रहती थी जो आंसूं आए भी
***
कभी तो बस कोने में खड़ी हो बाहर
देखती थी हम बच्चों की गलतियों का
जिम्मेदार तुम्हें ठहराया जाता था
बात कोई भी हो दोषी तुम्हें बताया जाता था
फिर भी तुम बगैर किसी शिकायत के अपनी
किस्मत को कोश फिर से मुस्करा
दिया करती थी माँ, मैं अब भी नहीं
समझ पाती के आख़िर इतना बोझ
तुम अकेले कैसे सहती थी
***
घर के सारे काम बगैर ही पापा की मदद
तुम अकेले ही करती थी
तब तो सहूलियत के नाम पर कोई मैड
या कोई मशीन भी न होती थी
घर तुम्हारा फिर भी हमसे ज्यादा अप
टू डेट रहता था हमारी जरूरत का ख्याल
तुम्हें हमसे बढ़कर रहता था
***
वो जब दिनभर की थकान के बाद एक्जाम
की रातों में हमारे साथ जागती थी
सोने में सबसे लेट और उठने में सबसे
पहले रहती थी माँ मैं अब भी नहीं
समझ पाती के आख़िर इतना बोझ
तुम अकेले कैसे सहती थी
***
कुछ बुरा लगता ही नहीं था तुम्हें
या बस बताती नहीं थी
गुस्सा तुम्हें कभी आता ही नहीं था
या कोई समझेगा नहीं ये सोच
जताती नहीं थी
घर की नाम प्लेट पर नाम सिर्फ
पापा का होता था
***
यह घर तुम्हारा भी तो है तो नाम
बस पापा का क्यूँ
क्या यह सवाल तुम्हें कभी सताता न था
माँ इतना धीरज आखिर तुम
लाती कहाँ से थी
***
मन में कोतोहल को तो रोक हरदम
बस शांत दरिया सी बहती
माँ मैं अब भी नहीं समझ पाती
के आख़िर इतना बोझ तुम
अकेले कैसे सहती थी
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सुनिए इस कविता का ऑडियो वर्शन
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... Thank You ...
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