Hum Ek Dusre Ke Liye Bane Hi Nahi Hai | Amritesh Jha | Poetry
इस कविता के बारे में :
इस काव्य 'हम एक दूसरे के लिए बने ही नहीं है' को G Talks के लेबल के तहत अमृतेश झा ने लिखा और प्रस्तुत किया है।
शायरी...
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मैं एक ही शैर सुबह साँझ कहता हूँ मैं पागल नहीं हूँ जो गूँज को चांद कहता हूँ पर ये मसला तुम्हारा है जो तुम्हें चांद आसमान में दिखता है अगर गूँज जमीन पर है तो मैं जमीन को आसमान कहता हूँ
पोएट्री...
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क्या हुआ जब हम साथ नहीं
ऐसा तो नहीं कि कभी साथ रहे नहीं है
आज नहीं तो कल यकीन हो ही जाता
जाना हम एक दूसरे के लिये बने ही नहीं है
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इतने ही जख्म पहले ही थे एक
और मिला तो हैरत नहीं हुई
दर्द का सिलसिला वही थम सा गया
क्युकी फिर मुझे किसी से मोहब्बत नहीं हुई
क्या हुआ जब हम बिछड़ गए
कुछ लोग तो मिलते ही है बिछड़ने के लिए
***
हर रिश्ता जिंदगी भर नहीं रहता
कुछ रिश्ते होते ही हैं बिखरने के लिए
सुनो एक बात बताओ
मुझे याद करते हो ना मुझे एहसास होता है
तुम्हारा जाना भी मुनासिब था
जिंदगी भर कौन किसी के पास होता है
अब मैं रोता भी हूँ तो मेरे आँसू नहीं निकलते
***
तुम्हारे जैसे ही हर किसी को नहीं मिलते
जी तो रहा ही हूँ तुम्हारे बिना
बस धड़कने ही चलती है
मेरे साँस नहीं चलते
तुम्हारे जाने का दर्द भी मैं सह लूँगा
ऐसा नहीं है कभी मैंने दर्द सहे नहीं है
क्या हुआ जब हम साथ नहीं
ऐसा तो नहीं कभी साथ रहे नहीं है
***
कुछ लोग रिश्ते बनाने में जोर देते हैं
तो कुछ लोग बस रिश्ता बनाकर छोड़ देते हैं
कुछ लोग रिश्तों के साथ चलते हैं
तो कुछ लोग नये रिश्तों के लिए
पुराने को तोड़ देते हैं
***
इश्क़ तो आखों से दिखता है
लबों से कहना जरूरी नहीं है
किसी रिश्ते को निभाने के लिए
उस रिश्ते मैं रहना जरूरी नहीं है
गलती चाहे किसी की भी हो
रिश्ता तो टूटा हमारा ही ना
***
तुम चाहो तो लौट कर आ जाना
आखिर मैं हूँ तो तुम्हारा ही ना
हा मुझे मालूम है कि ये इश्क़ का सफर हैं
इसमे लौटने के लिए राहे नहीं है
क्या हुआ जब हम साथ नहीं
ऐसा तो नहीं कभी हम कभी साथ रहे नहीं है
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सुनिए इस कविता का ऑडियो वर्शन
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... Thank You ...
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