Woh Chahta Toh Mohabbat Nibha Bhi Sakta Tha | Adnan Mughal | Social House Poetry
इस कविता के बारे में :
इस काव्य 'वो चाहता तो मोहब्बत निभा भी सकता था' को Social House के लेबल के तहत अदनान मुग़ल ने लिखा और प्रस्तुत किया है।
शायरी...
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आँख उठती नहीं किसी जानिब चेहरा आखों में भर लिया तेरा हम तुझे भूल भी सकते थे हमने तो हिब्ज कर लिया तेरा
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बर्फ पर किया लिखा अश्कों ने इस रवानी से सब किरदार निकाल आए हैं कहानी से ना तो तूफान था ना कश्ती पुरानी अपनी हम जो डूबे तो नाखुदा की मेहरबानी से
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तुम्हारी धड़कनों का दिल मे इतना शोर लगता है कोई दिल्ली पुकारे तो हमे लाहौर लगता है मेरी नींदे भी अब तो ओर किसी के ख्वाब बुनती है तुम्हारे नाम के आगे भी कुछ और लगता है
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शहंशाह हो सिकंदर हो कलंदर हो या कोई हो अगर हो जहन से बीमार तो कमजोर लगता है तुम्हारे खत चुरा कर ले गया कल रात कमरे से तुम्हारा ही दीवाना शहर का एक चोर लगता है
पोएट्री...
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कुछ दिन से तबीयत मेरी नासाज़ बहुत है
इस दर्जा हू खामोश के आवाज़ बहुत है
मैं एक मसला हू कहां तक निभाओगी
बस कर तो रही हो नजरअन्दाज बहुत है
दुनिया को सुनाने को तो किस्से हैं हज़ारों
दिल में दबा के रखों तो एक राज बहुत है
है ताज मोहब्बत की निशानी तो क्या करू
मैं शाहजहां हूँ मुझको तो मुमताज बहुत हैं
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अश्क आखों मे एक हसीन नजर आता है
जब वो हसता है गमहीन नजर आता है
उसे पता है वो शहजादी नही है लेकिन
उसे ख्वाबों मे अलादीन नजर आता है
यू तो बाहर से वो कश्मीर के जैसा है हसीन
और अंदर से फलस्तीन नजर आता है
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दुनिया ने मेरे इश्क़ मे फितने निकाल के
इतने तो ना थे रख दिए जितने निकाल के
अजल से हुस्न पर भारी रहा है इश्क़ यारों
यकीन ना हो तो इश्क़ से नुक्ते निकाल के
जो जागने वाले थे वो सब लूट ले गए
लाया था कोई बेचने सपने निकाल के
जब जाना शीशा ग़र ने की अंधों का शहर है
सब तोड़ डाले आईने उसने निकाल के
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किस्सों मे किताबों मे रिसालो मे रह गया
वो एक ख्याल बनकर ख़्यालों मे रह गया
मैं था के तलबगार था बस एक जवाब का
वो था के सारी उम्र सवालों मे रह गया
वो शख़्स जो ना इत्र था ना ही गुलाब
खुशबू सा महकता वो रुमाल में रह गया
खुद को तेरी महफिल से उठा लाए हम मगर
दिल था जो तेरे बालो मे उलझ के रह गया
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मेरी तलाश में निकल कर आ भी सकता था
वो चाहता तो मोहब्बत निभा भी सकता था
उसके हर खत को संजो कर के किताबों में रखा
उसकी तरह मे सब खत जला भी सकता था
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ऐसा भी क्या हुआ कि खुशी भूल गए तुम
हमसे बिछड़ के यार हसी भूल गए तुम
जिसको था भूल जाना वो तो याद रह गया
जो कुछ था याद रखना वो भूल गए तुम
तोहफे तो तुमने अभी भी रखे हैं सम्भाल कर
तोहफ़े किसने दिये थे यही भूल गए तुम
वो कह रहा था अब भी याद आते हो अदनान
पर मेने कहा नहीं यार भूल गए तुम *****
सुनिए इस कविता का ऑडियो वर्शन
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