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Tu Ishq Hai Ya Khwaab Hai | Gaurav Jha | The Social House Poetry
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Tu Ishq Hai Ya Khwaab Hai | Gaurav Jha | The Social House Poetry |
इस कविता के बारे में :
इस काव्य 'तू इश्क़ है या ख्वाब है' को Social House के लेबल के तहत गौरव झा ने लिखा और प्रस्तुत किया है।
कौन सा फूल दू उसे मैं वो खुद ही एक गुलाब हैं कोई लिख रहा हैं शायरी वो शायरों का ख्वाब है
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खुद को कबूल करने से इतना डर रहे हो वो कौन अनजान है जिस पर तुम मर रहे हो
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एक नजर एक दिन भी उसकी मिल जाए उस खुशी को ही प्यार कहते हैं ये जो दो जिस्म लिपटे पड़े है इसे धिक्कार कहते हैं
तू इश्क़ है या ख्वाब है
तेरा हुस्न लाजवाब है
किसी हूर की बूंदों से बनी
तू पूरा एक तालाब है
मैं डूब जाऊँ ना तैर पाउ
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तू ऐसा एक सैलाब है
तुझे कहना चाहूं है दिल मे तू हर
ख्वाब में शामिल है तू
उसी ख्वाब को कामिल तो कर मेरे
प्यार को हासिल तो कर
होगी सुबह तेरे साथ ही पर
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रात भी तेरे बाद ही
दिन भर तुझे मैं खुश रखूं
भले कैसे हो हालत ही
तू प्यार हैं इजहार भी
तू ही खुशी संसार भी
तू इश्क़ है या ख्वाब है
तेरा हुस्न लाजवाब है
***
कल तलक तू जान थी
आज जान ली तूने मेरी
जो बात की नशे मे थी कि
मान ली वो तूने मेरी
तू दूर मुझसे जा रही
या पास मेरे आ रही
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मैं इतना तुझको चाहता हू तू क्यू
ना मुझको चाह रही
कि बात करते इतनी हम तो
बात मेरी मान ले
***
और टाल मत इस बात को तू अपना
ले कि तूने मेरी जान ली
मैं जानता हूं कि चाहने वाले
काफी तेरे हैं यहा
***
तू क्यू चुनेगी मुझको फ़िर ये
सोचता मैं भी रहा
फिर जो छोड़ दी बात करना मेने
तुझसे दो रोज भी
***
अब क्या बताऊ हाल मेरा
हो रहा अफसोस भी
मैं प्यार तेरा मांगता हू आज सबके
सामने सच निकल रहा है सब काम
कर दिया है जाम ने
***
कल तलक तू जान थी आज
जान ली तूने मेरी
जो बात की नशे मे थी कि
मान ली वो तूने मेरी
***
तू प्यार हैं इजहार भी है
तू ही खुशी संसार भी
तू इश्क़ है या ख्वाब
तेरा हुस्न लाजवाब है
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सुनिए इस कविता का ऑडियो वर्शन
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... Thank You ...
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