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Tere Kandhey Pe Sir Rakh kar Sukoon Sa Lagta Hai | Shivani | The Social House Poetry

Tere Kandhey Pe Sir Rakh kar Sukoon Sa Lagta Hai | Shivani | The Social House PoetryTere Kandhey Pe Sir Rakh kar Sukoon Sa Lagta Hai | Shivani | The Social House Poetry
Tere Kandhey Pe Sir Rakh Kar Sukoon Sa Lagta Hai | Shivani | The Social House Poetry

इस कविता के बारे में :

इस काव्य ‘तेरे कंधे पर सिर रखकर दुनिया मे सुकून सा लगता है’ को Social House के लेबल के तहत शिवानी ने लिखा और प्रस्तुत किया है।

शायरी…

*****

तू ना बारिश में उस अदरक वाली चाय की तरह है जो मिले तो कड़क है और ना मिले तो तड़प है

***

थोड़ी मौसम में बेवफ़ाई है थोड़ी दिल्ली में धुन्ध छायी हैं पर आज भी तेरी तसवीर आसमान मे साफ़ नजर आयी है

***

क्या करू पिघल गई वरना मे भी बड़ी सख्त थी और कुछ होता तो चल जाता जनाब आशिकी कमबख्त थी

***

दिल ही तो टूटा है ये तो बाजार मे रोज का है धड़कन हल्की थमी है बस बाकी सब तो मौज का है

***

बाज़िया तो इश्क़ की हमने भी खेली हैं बेशक मोहब्बत ना मिली पर नफरत बड़ी शिद्दत से झेली हैं 

***

आज कल वो तेरी नयी वाली रोज गली के सामने से गुजर जाती हैं फिर भी कमबख्त हर 

रात तेरे ही खयाल मे गुजर जाती है 

पोएट्री…

*****

तेरे कंधे पर सिर रखकर दुनिया मे 

सुकून सा लगता है और तेरी आखों मे आंखे 

डालकर सब कुछ जुनून सा लगता है 

***

आजकल मुझे मेरी जिंदगी मे कुछ 

अफसोस सा लगता है तू नाराज हैं 

क्या जो इतना खामोश सा लगता है 

***

तेरा मेरा ये रिश्ता मझधार सा लगता है 

तेरे बोलने से पहले ही समझ लेती थी मैं 

पर अब तू भी समझदार सा लगता हैं 

***

मेरी डायरी के सारे पन्ने तेरे नाम है 

तू उनका ज़मीन दार सा लगता है 

तेरी यादों की ऋणी हू ये दिल 

तेरे पास उधार सा लगता है 

***

हर दिन फीके जज्बातों का बाजार सा लगता हैं 

और हर रात को तेरा ख्याल दिल तोड़ने 

का हथियार सा लगता है 


***

तेरे दिल मे झाँककर देखा मेने किसी 

हूर का फितूर सा लगता है 

शायद वो मे नही अब तू किसी और 

का गुरूर सा लगता है 


***

फिर भी तेरे कंधे पर सिर रखकर दुनिया 

मे सुकून सा लगता है और तेरी आखों 

मे आंखे डालकर सब कुछ जुनून सा लगता है

*****

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