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Tere Kandhey Pe Sir Rakh kar Sukoon Sa Lagta Hai | Shivani | The Social House Poetry
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Tere Kandhey Pe Sir Rakh Kar Sukoon Sa Lagta Hai | Shivani | The Social House Poetry |
इस कविता के बारे में :
इस काव्य 'तेरे कंधे पर सिर रखकर दुनिया मे सुकून सा लगता है' को Social House के लेबल के तहत शिवानी ने लिखा और प्रस्तुत किया है।
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तू ना बारिश में उस अदरक वाली चाय की तरह है जो मिले तो कड़क है और ना मिले तो तड़प है
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थोड़ी मौसम में बेवफ़ाई है थोड़ी दिल्ली में धुन्ध छायी हैं पर आज भी तेरी तसवीर आसमान मे साफ़ नजर आयी है
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क्या करू पिघल गई वरना मे भी बड़ी सख्त थी और कुछ होता तो चल जाता जनाब आशिकी कमबख्त थी
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दिल ही तो टूटा है ये तो बाजार मे रोज का है धड़कन हल्की थमी है बस बाकी सब तो मौज का है
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बाज़िया तो इश्क़ की हमने भी खेली हैं बेशक मोहब्बत ना मिली पर नफरत बड़ी शिद्दत से झेली हैं
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आज कल वो तेरी नयी वाली रोज गली के सामने से गुजर जाती हैं फिर भी कमबख्त हर रात तेरे ही खयाल मे गुजर जाती है
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तेरे कंधे पर सिर रखकर दुनिया मे
सुकून सा लगता है और तेरी आखों मे आंखे
डालकर सब कुछ जुनून सा लगता है
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आजकल मुझे मेरी जिंदगी मे कुछ
अफसोस सा लगता है तू नाराज हैं
क्या जो इतना खामोश सा लगता है
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तेरा मेरा ये रिश्ता मझधार सा लगता है
तेरे बोलने से पहले ही समझ लेती थी मैं
पर अब तू भी समझदार सा लगता हैं
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मेरी डायरी के सारे पन्ने तेरे नाम है
तू उनका ज़मीन दार सा लगता है
तेरी यादों की ऋणी हू ये दिल
तेरे पास उधार सा लगता है
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हर दिन फीके जज्बातों का बाजार सा लगता हैं
और हर रात को तेरा ख्याल दिल तोड़ने
का हथियार सा लगता है
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तेरे दिल मे झाँककर देखा मेने किसी
हूर का फितूर सा लगता है
शायद वो मे नही अब तू किसी और
का गुरूर सा लगता है
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फिर भी तेरे कंधे पर सिर रखकर दुनिया
मे सुकून सा लगता है और तेरी आखों
मे आंखे डालकर सब कुछ जुनून सा लगता है
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... Thank You ...
( Disclaimer: The Orignal Copyright Of this Content Is Belong to the Respective Writer )
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