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Tere Intezaar Mein | Ravie Solanky | The Social House Poetry |
इस काव्य ‘तेरे इंतज़ार में’ को Social House के लेबल के तहत रवी सोलंकी ने लिखा और प्रस्तुत किया है।
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एक इंतज़ार की आदत सी होने लगी है
हमे तन्हाई से मोहब्बत होने लगी है
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चुप रहे ये लब अब यही मुनासिब है
खामोशियाँ अपना जादू करने लगी है
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ना शिकवा न गिला न शिकायत है किसी से
हमे अपने ही इश्क़ से गलतफैमियाँ होने लगी है
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बनाने लगे थे जिस रेत से महल अपना
अब वही रेत हाथ से बिखरने लगी है
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न काबिल हु में अब बैत-ए-इश्क़ सजाने में
ये ग़ैर मश्रूत इश्क़ की सज़ा लगने लगी है
ये ग़ैर मश्रूत इश्क़ की सज़ा लगने लगी है
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