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Main Tumhe Roz Yaad Karta Hun | Main Aur Meri Ghazalein | Social House Poetry

Main Tumhe Roz Yaad Karta Hun | Main Aur Meri Ghazalein | The Social House Poetry | WhatashortMain Tumhe Roz Yaad Karta Hun | Main Aur Meri Ghazalein | The Social House Poetry | Whatashort
Main Tumhe Roz Yaad Karta Hun | Main Aur Meri Ghazalein

इस कविता के बारे में :

इस काव्य ‘मैं तुम्हे रोज़ याद करता हूँ’ को Social House के लेबल के तहत अब्दुस समद अंसारी ने लिखा और प्रस्तुत किया है।

*****

शायरी…

खाक की तेह में उतरने के लिए जीते है, अजीब लोग है मरने के लिए जीते है

ग़ज़ल

अपनी हस्ती मिटा रहा हूँ में

उसके कूचे में जा रहा हूँ में

और में तुम्हे रोज़ याद करता हूँ

क्या तुम्हे याद आरहा हूँ में

तुम जो सुनलो तो मेहरबानी हो

***

किस्सा – ये – गम सुना रहा हूँ में

देख पाओ जो मुझको देखो तुम

आज कियूं मुस्कुरा रहा हूँ में

में तो ज़िन्दगी का एक झोका हूँ

ज़रा ठहरो के आरहा हूँ में

*****

शायरी…

हर मोहब्बत होती नहीं है कुछ पाने के लिए
शम्स डूबता है चाँद को जगाने के लिए
और इश्क़ पहला हर किसी को याद रहता है
कुछ हादसे होते नहीं है भुलाने के लिए

ग़ज़ल

बतलाऊ तुम्हे क्या मुझे हालत ने मारा

हालत को मेरे जज़्बात ने मारा

ऐसे न मुझे हिज्र के लम्हात ने मारा

जैसे की मुझे तेरी मुलाकात ने मारा

***

हर बात पे एक ज़ुल्म है हर बात पे तकरार

ज़ालिम की मुझे देखिये हर बात ने मारा

और जो तीर मेरे सीने पे वो मार न पाया

वो तीर मेरी पुष्ट पे उस बज़्ज़ात ने मारा

***

कुछ मुझको ख़यालात से उम्मीद थी लेकिन

आये जो ख़यालात, ख़यालात ने मारा

बतलाऊ तुम्हे क्या मुझे हालत ने मारा

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