इस काव्य ‘उसे पसंद है’ को Social House के लेबल के तहत निधि नरवाल ने लिखा और प्रस्तुत किया है।
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दुपट्टा क्या अटका सांकल में
कमबख्त लगा दर पर तुम खड़े हो।
कुछ जख्म़ अब पायाब है कुछ है अभी ताजे ही
खिड़कियों से तो अब भी झाकने आ जाता है वो
बंद दिखते हैं उसके बस दरवाजे।
***
इश्क़ से मिलकर देखा था
जीना मोहाल कर गया,
कुर्बत में लाश छोड़कर
कब्र मिट्टी से भर गया।
***
अब उससे बात नहीं करनी
पर अब बात उसी की करनी है
दिन दे दिया ऐ जिंदगी तुझे अपना
मगर रात उसी की करनी है
अगर बख्शे मुफ्त में मुझे खुदा से
एक हसरत ख़ास उसी की करनी है
मैं क्या करू इन दीवानो का मुझे
बदतमीजियां बस बर्दाश्त उसी की करनी है।
‘बाते बेहिसाब बताना ,’
“कुछ कहते कहते चुप हो जाना,”
‘उसे जताना उसे सुनाना,’
“वो कहता है उसे पसंद है,”
***
‘ये निगाहें खुला महखाना है,’
“वो कहता है, दरबान बिठा लो,”
‘हल्का सा वो कहता है
तुम काजल लगा लो,’
“वेसे ये मेरा शौक नही,
पर हाँ उसे पसंद है,”
***
‘दुपट्टा एक तरफ ही डाला है,’
“उसने कहा था की सूट सादा ही पहन लो,”
‘”बेशक़ तुम्हारी तो सूरत से उजाला है, ‘”
‘तुम्हारे होठों के पास जो तिल काला है,’
“बताया था उसने, उसे पसंद है,”
***
‘वो मिलता है ,तो हस देती हूं,’
“चलते चलते हाथ थाम कर उससे
बेपरवाह सब कहती हूं,”
‘और सोहबत मैं उसकी जब चलती है हवाएं,’
“मैं हवाओं सी मद्धम बहती हु,”
***
‘मन्नत पढ़ कर नदी मैं पत्थर फेंकना, ‘
“मेरा जाते जाते यू मुड़ कर देखना ,”
‘ओर वो गुज़रे जब इन गलियों से ,’
“मेरा खिड़की से छत से छूप कर देखना,”
“‘हां उसे पसंद है,”‘
***
‘झुल्फों को खुला ही रख लेती हूं,’
“उसके कुल्हड़ से चाय चख लेती हूं,”
‘मैं मंदिर मे सर जब ढक लेती हूं,’
“वो कहता है उसे पसंद है,”
***
‘ये झुमका उसकी पसंद का है,’
“और ये मुस्कुराहट उसे पसंद है,”
‘लोग पूछते है सबब मेरी अदाओ का ,’
“मैं कहती हूं उसे पसंद है,”
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