"जो कहा मैं ने कि प्यार आता है मुझ को तुम पर हँस के कहने लगा और आप को आता क्या है"
"इश्क़ के इज़हार में हर-चंद रुस्वाई तो है पर करूँ क्या अब तबीअत आप पर आई तो है"
"इश्क़ नाज़ुक-मिज़ाज है बेहद अक़्ल का बोझ उठा नहीं सकता"
"जान शायद फ़रिश्ते छोड़ भी दें डॉक्टर फ़ीस को न छोड़ेंगे"
"जब ग़म हुआ चढ़ा लीं दो बोतलें इकट्ठी मुल्ला की दौड़ मस्जिद ‘अकबर’ की दौड़ भट्टी"
"जब मैं कहता हूँ कि या अल्लाह मेरा हाल देख हुक्म होता है कि अपना नामा-ए-आमाल देख"
"जवानी की दुआ लड़कों को ना-हक़ लोग देते हैं यही लड़के मिटाते हैं जवानी को जवाँ हो कर"
"हुए इस क़दर मोहज़्ज़ब(सभ्य) कभी घर का मुँह न देखा कटी उम्र होटलों में मरे अस्पताल जा कर"
"जो वक़्त-ए-ख़त्ना मैं चीख़ा तो नाई ने कहा हँस कर मुसलमानी में ताक़त ख़ून के बहने से आती है"
"किस नाज़ से कहते हैं वो झुंजला के शब-ए-वस्ल( मिलन की रात) तुम तो हमें करवट भी बदलने नहीं देते"
"कुछ तर्ज़-ए-सितम भी है कुछ अंदाज़-ए-वफ़ा भी खुलता नहीं हाल उन की तबीअत का ज़रा भी" "क्या वो ख़्वाहिश कि जिसे दिल भी समझता हो हक़ीर(घृणित) आरज़ू वो है जो सीने में रहे नाज़ के साथ" "लिपट भी जा न रुक ‘अकबर’ ग़ज़ब की ब्यूटी है नहीं नहीं पे न जा ये हया की ड्यूटी है" "मेरी ये बेचैनियाँ और उन का कहना नाज़ से हँस के तुम से बोल तो लेते हैं और हम क्या करें" "मिरा मोहताज होना तो मिरी हालत से ज़ाहिर है मगर हाँ देखना है आप का हाजत-रवा(आवशयकताओं की पूर्ति करने वाला) होना" "नाज़ क्या इस पे जो बदला है ज़माने ने तुम्हें मर्द हैं वो जो ज़माने को बदल देते हैं" "नौकरों पर जो गुज़रती है मुझे मालूम है बस करम कीजे मुझे बेकार रहने दीजिए" "पैदा हुआ वकील तो शैतान ने कहा लो आज हम भी साहिब-ए-औलाद हो गए"
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