"किन लफ़्ज़ों में इतनी कड़वी, इतनी कसैली बात लिखूं
शेर की मैं तहज़ीब निभाऊं या अपने हालात लिखूं"
"हमको तो बस तलाश नए रास्तों की है…
हम हैं मुसाफ़िर ऐसे जो मंज़िल से आए हैं…"
"एहसान करो तो दुआओ में मेरी मौत मांगना अब जी भर गया है जिंदगी से ! एक छोटे से सवाल पर इतनी ख़ामोशी क्यों ….????? बस इतना ही तो पूछा था- “कभी वफ़ा की किसी से…” ??"
"ऊँची इमारतों से मकां मेरा घिर गया कुछ लोग मेरे हिस्से का सूरज भी खा गए"
"सब का ख़ुशी से फ़ासला एक क़दम है हर घर में बस एक ही कमरा कम है"
"तुम अपने क़स्बों में जाके देखो वहां भी अब शहर ही बसे हैं कि ढूँढते हो जो ज़िन्दगी तुम वो ज़िन्दगी अब कहीं नहीं है ।"
"अपनी वजहे-बरबादी सुनिये तो मज़े की है ज़िंदगी से यूँ खेले जैसे दूसरे की है"
"इस शहर में जीने के अंदाज़ निराले हैं होठों पे लतीफ़े हैं आवाज़ में छाले हैं"
"जो मुंतजिर न मिला वो तो हम हैं शर्मिंदा कि हमने देर लगा दी पलट के आने में।"
"उन चराग़ों में तेल ही कम था क्यों गिला फिर हमें हवा से रहे"
"पहले भी कुछ लोगों ने जौ बो कर गेहूँ चाहा था हम भी इस उम्मीद में हैं लेकिन कब ऐसा होता है"
"गिन गिन के सिक्के हाथ मेरा खुरदरा हुआ जाती रही वो लम्स की नर्मी, बुरा हुआ"
"लो देख लो यह इश्क़ है ये वस्ल है ये हिज़्र अब लौट चलें आओ बहुत काम पड़ा है"
"मिरे वुजूद से यूँ बेख़बर है वो जैसे वो एक धूपघड़ी है मैं रात का पल हूँ"
"याद उसे भी एक अधूरा अफ़्साना तो होगा
कल रस्ते में उसने हमको पहचाना तो होगा"
"पुरसुकूं लगती है कितनी झील के पानी पे बत पैरों की बेताबियाँ पानी के अंदर देखिए।"
"बहुत आसान है पहचान इसकी अगर दुखता नहीं तो दिल नहीं है"
"खो गयी है मंजिले, मिट गए है सारे रस्ते, सिर्फ गर्दिशे ही गर्दिशे, अब है मेरे वास्ते. काश उसे चाहने का अरमान न होता, मैं होश में रहते हुए अनजान न होता"
"जो बाल आ जाए शीशे में तो शीशा तोड़ देते हैं जिसे छोड़ें उसे हम उम्रभर को छोड़ देते हैं ।"
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